राजस्थानी के कवि

25/01/2011 22:36

 

     
     
     

  • अंगारे को तुम ने छुआ / कन्हैयालाल नंदन

  • अंगारे को तुम ने छुआ और हाथ में फफोला नहीं हुआ
    इतनी सी बात पर आंगारे को तोहमत ना लगाओ
    आग भी कभी-कभी अपना धर्म निभाती है
    और जलने वाले की क्षमता देख कर जलाती है

     
  • अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं / ख़ुमार बाराबंकवी
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  • अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं 
    मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं 

    इलाही मेरे दोस्त हों ख़ैरियत से 
    ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं 

    बहुत ख़ुश हैं गुस्ताख़ियों पर हमारी 
    बज़ाहिर जो बरहम नज़र आ रहे हैं 

    ये कैसी हवा-ए-तरक्की चली है 
    दीये तो दीये दिल बुझे जा रहे हैं 

    बहिश्ते-तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूँ 
    जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं 

    बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा 
    'ख़ुमार' आप काफ़िर हुए जा रहे हैं
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  • अजनबी अपना ही साया हो गया है / कविता किरण

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  • अजनबी अपना ही साया हो गया है
    खून अपना ही पराया हो गया है

    मांगता है फूल डाली से हिसाब
    मुझपे क्या तेरा बकाया हो गया है

    बीज बरगद में हुआ तब्दील तो
    सेर भी बढ़कर सवाया हो गया है

    बूँद ने सागर को शर्मिंदा किया
    फिर धरा का सृजन जाया हो गया है

    बात घर की घर में थी अब तक 'किरण'
    राज़ अब जग पर नुमायाँ हो गया है

     
  • अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़ / जॉन एलिया

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  • अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़ 
    वो बरसों बाद जब मुझ से मिला है
    भला मैं पूछता उससे तो कैसे
    मताए-जां तुम्हारा नाम क्या है?

    साल-हा-साल और एक लम्हा 
    कोई भी तो न इनमें बल आया
    खुद ही एक दर पे मैंने दस्तक दी
    खुद ही लड़का सा मैं निकल आया

    दौर-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं
    अहद-ए-वाबस्तगी को भूल गया
    यानी तुम वो हो, वाकई, हद है 
    मैं तो सचमुच सभी को भूल गया

    रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में 
    रस्म ही क्या निबाहनी होती 
    मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
    रो न पड़ते अगर खुशी होती 

    दिल में जिनका निशान भी न रहा
    क्यूं न चेहरों पे अब वो रंग खिलें 
    अब तो खाली है रूह, जज़्बों से
    अब भी क्या हम तपाक से न मिलें 

    शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी 
    नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं 
    आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है
    तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं

     
  • अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ / फ़राज़

  • अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ 
    याद क्या तुझ को दिलाएँ तेरा पैमाँ जानाँ 

    यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है 
    किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्साँ जानाँ 

    ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है 
    हम ने जैसे भी बसर की तेरा एहसाँ जानाँ 

    दिल ये कहता है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी 
    दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ 

    अव्वल-अव्वल की मुहब्बत के नशे याद तो कर
    बे-पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ 

    आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं 
    रग-ए-मीना सुलग उठी कि रग-ए-जाँ जानाँ 

    मुद्दतों से ये आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद 
    दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ 

    हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रखा था 
    ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ 

    अब की कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ 
    सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गिरेबाँ जानाँ 

    हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है 
    हर कोई अपने ही साये से हिरासाँ जानाँ 

    जिस को देखो वही ज़न्जीर-ब-पा लगता है 
    शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िन्दाँ जानाँ 

    अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये 
    और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जानाँ 

    हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे 
    हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ 

    होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा-रेज़ा 
    जैसे उड़ते हुये औराक़-ए-परेशाँ जानाँ
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  • अब जुनू कब किसी के बस में है / जॉन एलिया
  • अब तो मज़हब / गोपालदास "नीरज"
  • अमावस की काली रातों में / कुमार विश्वास
  • अश्क बन कर जो छलकती रही मिट्टी मेरी / द्विजेन्द्र 'द्विज'

ग आगे.

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