जिसके हृदय में सर्वकल्याण का भाव हो, उसके द्वारा लोकहित में किया नियम विरुद्ध कार्य भी आदरणीय होता है। रामानुज

गुरुदेव ने रामानुजाचार्य को अष्टाक्षर नारायण मंत्र का उपदेश देकर समझाया- वत्स! यह परम पावन मंत्र जिसके कानों में पड़ जाता है, वह समस्त पापों से छूट जाता है। मरने पर वह भगवान नारायण के दिव्य वैकुंठधाम में जाता है। 

जन्म-मृत्यु के बंधन में वह फिर नहीं पड़ता। यह अत्यंत गुप्त मंत्र है, इसे किसी अयोग्य को मत सुनाना। श्रीरामानुजाचार्य ने उस समय तो गुरु की बात मान ली, किंतु उनके मन में उसी समय से द्वंद्व शुरू हो गया, जब इस मंत्र को एक बार सुनने से ही घोर पापी भी पापमुक्त होकर भगवद्धाम का अधिकारी हो जाता है, तब संसार के ये प्राणी क्यों मृत्युपाश में पड़े रहें। 

क्यों इन्हें यह परम पावन मंत्र सुनाया जाए लेकिन गुरु आज्ञा का उल्लंघन महापाप है। क्या करूं, जो दोनों ओर का निर्वाह हो जाए। हृदय में ऐसा संघर्ष चलने पर नींद भी नहीं आती। रात्रि में सभी के सो जाने पर भी रामानुज जाग रहे थे। वे धीरे से उठे और कुटिया के छप्पर पर चढ़कर पूरी शक्ति से चिल्लाने लगे - नमो नारायण, सभी लोग जाग गए। गुरुदेव ने उनसे पूछा- यह क्या कर रहा है। 

रामानुज बोले, गुरुदेव आपकी आज्ञा भंग करने का महापाप करके मैं नर्क में जाऊंगा, इसका मुझे कोई दुख नहीं है किंतु खुशी है कि ये सभी प्राणी यह मंत्र सुनकर भगवद्धाम पहुंच जाएंगे। गुरुदेव ने उन्हें क्षमाकर गले लगाते हुए कहा- तू मेरा सच्च शिष्य है। 

वस्तुत: प्राणियों के उद्धार की जिसे इतनी चिंता हो, वही भगवान का सच्च भक्त और स्वर्ग का अधिकारी है। जिसके हृदय में सर्वकल्याण का भाव हो, उसके द्वारा लोकहित में किया नियम विरुद्ध कार्य भी आदरणीय होता  


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