दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा

28/11/2010 12:27

दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा फहराकर रसिक रवींद्र की टीम ने वह कारनामा कर दिखाया है, जिसे आज से पहले किसी भारतीय दल ने नहीं किया था। उनका यह सफर कितना मुश्किल रहा होगा, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2,300 किलोमीटर की बर्फीली यात्रा के दौरान उन्हें 200 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा की रफ्तार से बहने वाली सर्द हवाओं से जूझना पड़ा। बहरहाल पिछले 29 वर्ष से अंटार्कटिक में चल रहे भारतीय अभियान का यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।


दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय अभियान की शुरुआत 1981 से हुई, जब कुछ वैज्ञानिकों का दल अंटार्कटिक पहुंचा। पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत अंटार्कटिक और महासागर अनुसंधान राष्ट्रीय केंद्र की निगरानी में चल रहे इस अभियान को वैश्विक स्वीकार्यता तब मिली, जब भारत ने अंटार्कटिक समझौता किया। इसी क्रम में वहां 1983 में दक्षिण गंगोत्री नामक स्टेशन की शुरुआत की गई। वर्ष 1989 में वहां दूसरे स्टेशन की नींव भी रखी गई, जिसका नाम मैत्री यानी दोस्ती रखा गया। फिलहाल मैत्री से ही सारे शोध किए जा रहे हैं।

अंटार्कटिक पर मानवीय गतिविधियों की शुरुआत 1901 में ही हो गई थी। वहां सबसे पहले ब्रिटिश खोजकर्ता रॉबर्ट फॉल्कन स्कॉट पहुंचे थे। पर वह दक्षिण ध्रुव तक नहीं पहुंच पाए थे। दक्षिणी ध्रुव पर कदम रखने का सपना 14 दिसंबर, 1911 को तब पूरा हुआ, जब नार्वे के वैज्ञानिकों का एक दल रोआल्ड एमंडसन के नेतृत्व में वहां पहुंचा। इसके बाद चार जनवरी, 1958 को सर एडमंड हिलेरी भी दक्षिणी ध्रुव पहुंचने में सफल हुए। बहरहाल, भारतीय अभियान की अगली कड़ी में वहां एक और शोध स्टेशन की शुरुआत होने जा रही है, जो संभवतः अगले दो वर्षों में काम करने लगेगा। इस स्टेशन का नाम भारती रखा गया है और इसके कार्य करते ही भारत उन नौ देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जिसके कई स्टेशन वहां काम कर रहे हैं।

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