अब्राहम लिंकन का बचपन अभावों में बीता। पुस्तक खरीदकर पढ़ना उनके लिए कठिन था।

 अब्राहम लिंकन का बचपन अभावों में बीता। कभी नाव चलाकर, तो कभी लकड़ी काटकर वे जीविका चलाते थे। उन्हें महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़ने में बड़ा आनंद आता था। किंतु पुस्तक खरीदकर पढ़ना उनके लिए कठिन था। वे अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन के जीवन से बहुत प्रभावित थे। 


एक बार उन्हें पता चला कि एक पड़ोसी के पास जॉर्ज वॉशिंगटन की जीवनी है। उन्हें हिचक हुई, किंतु पड़ोसी ने उनकी रुचि देखते हुए पुस्तक दे दी। लिंकन ने उसे जल्दी ही लौटाने का वादा किया। लिंकन ने पुस्तक पूरी पढ़ी भी नहीं थी कि एक दिन जोरों की बारिश हुई। चूंकि लिंकन झोपड़ी में रहते थे, इसलिए पुस्तक भीग गई। 

लिंकन बड़े दुखी मन से पड़ोसी के पास जाकर बोले - मुझसे आपकी पुस्तक खराब हो जाने का बड़ा भारी अपराध हो गया है, किंतु मैं आपको खराब पुस्तक नहीं लौटाते हुए नई लाकर दूंगा। पड़ोसी ने उसकी गरीबी को देखते हुए प्रश्न किया। नई किस तरह से दोगे? लिंकन बोले- मुझे अपनी मेहनत पर विश्वास है। 

मैं आपके खेत में मजदूरी कर पुस्तक के दोगुने दाम का काम कर दूंगा। पड़ोसी मान गया। लिंकन ने काम कर पुस्तक के दाम की भरपाई कर दी और वॉशिंगटन की जीवनी उन्हीं की संपत्ति हो गई। अपने श्रम से इस प्रकार लिंकन ने अपने पुस्तकालय की पहली पुस्तक प्राप्त की।

लिंकन के जीवन की यह घटना परिश्रम के द्वारा उपार्जन के महत्व को इंगित करती है। वस्तुत: स्वयं की मेहनत के बल पर प्राप्त उपलब्धि आत्मिक संतुष्टि तो देती ही है, साथ ही समाज की दृष्टि में भी प्रशंसनीय अनुकरणीय होती है


© 2011All rights reserved for Dwarkeshvyas