आमने-सामने सत्ता और सेना (तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान पाकिस्तान में नई उम्मीद बनकर उभर रहे हैं। )

आमने-सामने सत्ता और सेना (तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान पाकिस्तान में नई उम्मीद बनकर उभर रहे हैं। )

पाकिस्तान की राजनीति रोज करवट ले रही है। हाल ही में तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान पाकिस्तान में नई उम्मीद बनकर उभर रहे हैं। बताया यह भी जा रहा है कि उन्हें सेना का समर्थन मिल रहा है। अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद से ही पाक सरकार और सेना के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हैं। लादेन के मारे जाने के बाद सेना ने सरकार पर उंगली उठाई थी। जरदारी को डर था कि कहीं सेना उनकी सरकार का तख्ता न पलट दे। इस आशंका के तहत जरदारी ने अमेरिका से मदद मांगने के लिए एक गोपनीय पत्र (मेमोगेट) अमेरिका में पाक के तत्कालीन राजदूत हुसैन हक्कानी को कहकर पाकिस्तान के अमेरिकी कारोबारी मंसूर एजाज के जरिये अमेरिकी सेना प्रमुख को पहुंचाया था। 

उस रहस्योद्घाटन के बाद पाक राजनीति में भूचाल आ गया, जो अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कयानी के नजदीकी रक्षा सचिव ने कहा है कि सरकार के पास सेना और आईएसआई पर अंकुश लगाने का कोई अधिकार नहीं है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री गिलानी ने पिछले दिनों आईएसआई के मुखिया शुजा पाशा को सख्त लहजे में याद दिलाया कि मेमोगेट के बारे में कोई जानकारी उन्हें सेनाध्यक्ष से साझा करने के बजाय सरकार से साझा करनी चाहिए थी। गरज यह कि सेना और सरकार, दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ जंग छेड़ दी है, और न्यायपालिका भी इसमें जरदारी के खिलाफ है। उसने जरदारी को कहा है कि अपने पद की आड़ लेकर वह अदालत में व्यक्तिगत पेशी से बच नहीं सकते। 

दरअसल इस मामले का सीधा संबंध देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा से है, इसलिए अगर यह साबित हो गया कि उक्त गोपनीय पत्र जरदारी के आदेश पर अमेरिकी प्रशासन को सौंपा गया था, तो उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा भी दर्ज हो सकता है। एक नए घटनाक्रम के तहत बेनजीर भुट्टो की पुण्यतिथि पर सिंध के गढ़ी खुदाबख्श में आयोजित एक समारोह में राष्ट्रपति ने पूर्व गृह मंत्री ऐतजाज एहसान को ज्यादा महत्व दिया, तो यह अफवाह शुरू हो गई कि जरदारी गिलानी की जगह एहसान को नया प्रधानमंत्री बना सकते हैं। 

पाकिस्तान में अमेरिका-विरोधी माहौल में कहीं कोई कमी नहीं आई है। पिछले महीने नाटो फौज द्वारा पाक की चेकपोस्ट पर हमले के बाद पाक जनता ने अपनी सरकार पर जोर डाला था कि वह अमेरिका से सभी तरह के संबंध खत्म करे। उसके बाद पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तैनात नाटो फौजों के लिए पाक के रास्ते जारी आपूर्ति पर पाबंदी लगाने के अलावा बलूचिस्तान स्थित शम्सी एयरबेस को खाली करा लिया था। अफगानिस्तान मुद्दे पर बॉन में हुई बैठक का भी इसलामाबाद ने बहिष्कार किया। हालांकि हाल ही में ओबामा प्रशासन ने उसके प्रति नरमी दिखाई है। इसके बावजूद पाक जनता, खासकर कट्टरपंथियों का, गुस्सा ठंडा नहीं हुआ। मुंबई हमले के जिम्मेदार जमात-उद-दावा ने पाक को तालिबानी देश में बदलने की धमकी देने के अलावा अमेरिका और भारत से हर तरह के संबंध खत्म करने की मांग की है। 

पाक राष्ट्रपति आसिफ जरदारी ऑपरेशन ओसामा, मेमोगेट घोटाले और नाटो फौजों द्वारा पाक चैकपोस्टों पर हमले के बाद से ही सख्त जेहनी दबाव और परेशानी का सामना कर रहे थे। देश के हालात ने भी कुछ ऐसा रुख अख्तियार किया, जिस कारण वह अपनी फौज और जनता से आंख नहीं मिला पा रहे थे। हालांकि पाक सत्ता प्रतिष्ठान अब सेना के खिलाफ सख्त है, लेकिन मेमोगेट कांड व नेशनल रिकन्सीलिएशन ऑर्डर (एनआरओ) पर प्रत्याशित फैसले और लादेन के मारे जाने की जांच कर रहे एबटाबाद आयोग की रिपोर्ट जारी होने के मद्देनजर जरदारी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। 

वैसे तो कयानी और शुजा पाशा को हटाने की खबरें हैं, लेकिन कोई ऐसा रास्ता तलाश किया जा रहा है, जिससे फौज और पाक जनता को जरदारी से छुटकारा मिल जाए और उनकी जगह पार्टी का ही कोई नेता या साफ-सुथरी छवि वाला दूसरा शख्स उनकी जगह ले। इस तरह लोकतांत्रिक सरकार का भ्रम भी बना रहेगा जिसकी अवधि 2013 में खत्म हो रही है। अगले चंद दिन पाक की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण हैं। निकट भविष्य में कुछ भी हो सकता है।


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