डाक विभाग के लिए नई दिशाv

 

डाक विभाग ने कैबिनेट को नए डाक कानून का मसौदा विचार के लिए भेजा है। प्रस्ताव है कि सामान्य पत्र के लिए कोरियर कम्पनियों को स्पीड पोस्ट से दुगना चार्ज करना होगा।

वर्तमान में डाक विभाग द्वारा स्पीड पोस्ट के लिए 25 रुपया वसूल किया जाता है। कोरियर कम्पनियों के लिए अनिवार्य होगा कि वे कम से कम 50 रुपए वसूल करें। विभाग का मानना है कि इससे उसे प्रतिस्पर्धा से कुछ राहत मिल जाएगी। मसौदे में व्यवस्था है कि 15 साल बाद कोरियर उद्योग को सभी नियंत्रण से मुक्त कर दिया जाएगा।
प्रस्तावित कानून में व्यवस्था है कि निजि कोरियर कम्पनियों को डाक विभाग की स्पीड पोस्ट की दर से दो गुना मूल्य वसूल करना होगा। यह व्यवस्था ठीक नहीं है। यहां दूसरे देशों के अनुभवों से समझने की जरूरत है। कई देशों में कोरियर कम्पनियों के लिए अनिवार्य है कि पत्र के डाक खर्च से ढाई गुना मूल्य वसूल करें। परन्तु यह मूल्य साधारण पत्र पर लगने वाली टिकट से आंका जाता है न कि स्पीड पोस्ट से। भारत में पत्र का डाक खर्च 5 रुपए है। दूसरे देशों की व्यवस्था का अनुसरण करें तो अपने देश में कोरियर का न्यूनतम मूल्य 12.50 होना चाहिए। यह भी विचारणीय है कि हम दूसरे देशों से गलत सबक क्यों लें?
इस व्यवस्था को लागू करना भी कठिन होगा। छोटी कोरियर कम्पनियां 50 रुपए की रसीद काटेंगी लेकिन ग्राहक से मात्र 30 रुपया वसूल करेंगी। यह सरकार द्वारा जनता को भ्रष्ट बनाने का प्रयास होगा। यह व्यवस्था छोटी कोरियर कम्पनियों के लिए विशेषत: कष्टप्रद होगी। मेरी जानकारी में बड़ी कोरियर कम्पनियां वर्तमान में सामान्य पत्र के लिए 40 से 100 रुपए तक वसूल करती हैं। इनपर नई व्यवस्था का तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। मुख्यत: छोटी कम्पनियों के सामने समस्या आ जाएगी। ये वर्तमान में 25 से 40 रुपए तक वसूल कर रही हैं। 50 रुपया वसूल करके ये बड़ी कम्पनियों की प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक सकेंगी। कुछ छोटी कम्पनियां बंद भी हो सकती हैं। यह देश के लिए हानिप्रद होगा। छोटे को संरक्षण एवं प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि बड़ी कम्पनियों पर अंकुश कायम रहे। 
डाक विभाग को संरक्षण देने का आधार है कि ग्रामीण क्षेत्रों में डाक व्यवस्था उपलब्ध कराने में जो अतिरिक्त खर्च आता है उसकी भरपाई हो जाए। डाक विभाग तमाम छोटे डाकखाने चलाता है। इनकी आय कम और खर्च यादा होता है। कोरियर कम्पनियां केवल बड़े शहरों में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं जहां काम अधिक और लाभ भी अधिक होता है। डाक विभाग का तर्क है कि दूर दराज क्षेत्रों में सुविधा उपलब्ध कराने के एवज में उसे संरक्षण मिलना चाहिए। विभाग का यह तर्क सही है।  पहला सुझाव यह है कि कोरियर कम्पनियों को पत्रों की ढुलाई करने की पूरी छूट दें। सरकार अनुमान लगाए कि इससे डाक विभाग को कितना घाटा लगेगा। उतनी रकम का टैक्स कोरियर कम्पनियों पर आरोपित कर दिया जाए। इस रकम को डाक विभाग को सब्सीडी के रूप में दे दिया जाए। इस संदर्भ में मोबाइल फोन की प्रणाली को लागू करना चाहिए। सभी कम्पनियों द्वारा प्रदान की जा रही शहरी सुविधाओं पर टैक्स लगाकर सभी कम्पनियों द्वरा ग्रामीण क्षेत्रों में दी जा रही सेवाओं पर सब्सीडी देना चाहिए। यानि निजी कोरियर कम्पनियां यदि ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधा दें तो उन्हें भी इस कोष से सब्सीडी मिलनी चाहिए। व्यवस्था की जा सकती है कि किसी राय के सभी जिला मुख्यालयों में कोरियर सेवा उपलब्ध कराने वालों को कुछ दूट दे दी जाए। प्रयास होना चाहिए कि जिला मुख्यालयों एवं छोटे शहरों तक कोरियर कम्पनियों का जाल बिछे और दूरस्थ इलाकों में अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार हो। सरकार को चाहिए कि कोरियर कंपनियों को अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत करें क्रमश: जो केवल महानगरों, रायों की राजधानियों, जिला मुख्यालयों, छोटे शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। इन्हें म से टैक्स में छूट और सब्सीडी देनी चाहिए। चूंकि डाक विभाग ग्रमीण क्षेत्रों में यादा सेवाएं उपलब्ध कराता है इसलिए वह यादा सब्सीडी का हकदार रहेगा।  नई व्यवस्था को लागू करने के पीछे सरकार का उद्देश्य सरकार के बजट घाटे को कम करना है। डाक विभाग के घाटे की भरपायी केन्द्र सरकार के बजट से की जाती है अतएव डाक विभाग की आय बढ़ाना जरूरी है। कोरियर कंपनियों द्वारा पत्रों की बुकिंग पर प्रतिबंध लगाने से यह कारोबार डाक विभाग को मिलेगा। डाक विभाग के घाटे की भरपाई पत्रों के बढ़ते कारोबार से हो जाएगी। 
मेरी समझ से यह कदम सरकार का बजट घाटा कम नहीं करेगा। कोरियर कंपनियां अर्थव्यवस्था में मोबिल आयल का कार्य करती हैं। जैसे कोरियर के माध्यम से चेक दूसरे दिन ही प्राप्त हो जाता है और व्यापार तेजी पकड़ता है। नई प्रणाली के अर्थव्यवस्था पर दो परस्पर विरोधी प्रभाव पड़ेंगे। एक तरफ सरकार का बजट घाटा कम होगा। दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था धीमी पड़ेगी और सरकार को राजस्व कम मिलेगा। इन दोनों प्रभावों का सम्मिलित प्रभाव नकारात्मक हो सकता है। 
डाक विभाग का तर्क है कि दूसरे देशों में पत्र की ढुलाई का एकाधिकार डाक विभाग के पास है। इस वैश्विक व्यवस्था को भारत में लागू मात्र किया जा रहा है। इस तर्क में आंशिक सत्य है। सिविल सोसायटी एक्सचेंज की बेबसाइट पर बताया गया है कि इंग्लैंड में 350 ग्राम, आस्ट्रेलिया में 250 ग्राम और नीदरलैण्ड तथा जर्मनी में 50 ग्राम से कम वजन के पत्रों पर डाक विभा्रग का एकाधिकार है। दूसरी ओर न्यूजीलैंड में कोरियर कम्पनियों को पूरी छूट है। जापान में इस वर्ष डाक विभाग का पूर्ण निजिकरण किया जा रहा है। यूरोपीय यूनियन डाक व्यवस्था को निजि कम्पनियों के लिए 2009 तक खोलने जा रहा है। स्पष्ट होता है कि वैश्विक स्तर पर सुधार की दिशा डाक विभाग के एकाधिकार को समाप्त करने की ओर है यद्यपि अनेक स्थान पर एकाधिकार व्यवस्था लागू है। 
मान लिया जाए कि दूसरे देशों में डाक विभाग को पत्रों की ढुलाई का एकाधिकार है तो भी हम उनका अनुसरण क्यों करें? हमें स्वतंत्र चिंतन करके अपनी व्यवस्था बनानी चाहिए। उदारीकरण का मूल सिध्दान्त सरकार की भूमिका को न्यून करना एवं बुनियादी संरचना में निजि क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है। मोबाइल टेलीफोन, बिजली वितरण, बीमा एवं बैंक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निजि क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस सिध्दान्त को डाक व्यवस्था पर भी लागू करना चाहिए। डाक विभाग की मौलिक समस्या है कि डाक का प्रचलन ही कम हो गया है। मोबाइल फोन सस्ता होने से 5 रुपए का अन्तर्देशीय भेजने के स्थान पर लोग फोन पर बात करना यादा पसन्द करते हैं। ईमेल के प्रचलन ने भी डाक विभाग को गौण बना दिया है। डाक विभाग ने इस बदलती परिस्थिति का सामना करने के लिए बैंकिंग में प्रवेश करने का निर्णय लिया है जो स्वागत योग्य है। शीघ्र ही 4000 डाकखानों में कोर बैंकिंग व्यवस्था चालू हो जाएगी। किसी भी डाकखाने में चेक को कैश कराया जा सकेगा। एटीएम भी लगाए जाएंगे। डाक विभाग को इस दिशा में बढ़ना चाहिए। सही चल रही कोरियर व्यवस्था को अनायास ही नहीं ध्वस्त करना चाहिए। 


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