पत्नियों को विधानसभा पहुंचाने के लिए सांसदों ने कसी कमर

उत्तर प्रदेश की विभिन्न संसदीय सीटों से निर्वाचित सांसद अब अपनी पत्नियों को विधानसभा पहुंचाने की तैयारी में हैं। पत्नियों को विधायक बनाने के लिए कुछ सांसद पर्दे के पीछे रणनीति बना रहे हैं, तो कुछ सीधे प्रचार की कमान थामकर मैदान में उतर गए हैं। इनमें ज्यादातर सांसद कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के हैं।

केंद्रीय कानून मंत्री व फर्रुखाबाद से सांसद सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद फर्रुखाबाद विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने किस्मत आजमाई थी, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह बरेली से कांग्रेस के सांसद प्रवीण सिंह ऐरन भी अपनी पत्नी सुप्रिया ऐरन को पार्टी से टिकट दिलवाने में सफल रहे, जो फिलहाल बरेली की महापौर हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री व सुल्तानपुर से कांग्रेस के सांसद संजय सिंह अपनी पत्नी अमिता सिंह को दोबारा विधायक बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। वह कांग्रेस के टिकट पर अमेठी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। बहराइच से कांग्रेस सांसद कमांडो कमल किशोर अपनी पत्नी पूनम किशोर को जिले के श्रावस्ती सीट से कांग्रेस का टिकट दिलाने में कामयाब रहे। 

जेल में बंद जौनपुर से बसपा के सांसद धनंजय सिंह ने अपनी पत्नी जागृति सिंह को विधायक बनाने के लिए निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतार दिया है। बसपा सांसद बृजेश पाठक ने अपनी पत्नी नम्रता पाठक को उन्नाव की सदर सीट से चुनाव मैदान में उतारा है। 

आजमगढ़ सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रमाकांत यादव भी अपनी पत्नी रंजना यादव को पार्टी से टिकट दिलवाने में कामयाब रहे। वह आजमगढ़ सदर से चुनाव मैदान में हैं। अमरोहा से राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के सांसद देवेंद्र नागपाल की पत्नी अंजू नागपाल जिले की नौगहा सादात विधानसभा सीट से मैदान में हैं। 

इस पर राजनीतिक चिंतक एच. एन. दीक्षित ने कहा, ‘स्वयं सांसद व मंत्री होने के बावजूद अपने परिवार के लोगों को क्षेत्र का विधायक बनाने की ये परम्परा स्वस्थ नहीं है। पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता होने की स्थिति में दिए जाने वाले टिकट को उचित माना जा सकता है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो साफ है कि राजनीतिक दल सम्बंधित क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं।’उत्तर प्रदेश की विभिन्न संसदीय सीटों से निर्वाचित सांसद अब अपनी पत्नियों को विधानसभा पहुंचाने की तैयारी में हैं। पत्नियों को विधायक बनाने के लिए कुछ सांसद पर्दे के पीछे रणनीति बना रहे हैं, तो कुछ सीधे प्रचार की कमान थामकर मैदान में उतर गए हैं। इनमें ज्यादातर सांसद कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के हैं।


केंद्रीय कानून मंत्री व फर्रुखाबाद से सांसद सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद फर्रुखाबाद विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने किस्मत आजमाई थी, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह बरेली से कांग्रेस के सांसद प्रवीण सिंह ऐरन भी अपनी पत्नी सुप्रिया ऐरन को पार्टी से टिकट दिलवाने में सफल रहे, जो फिलहाल बरेली की महापौर हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री व सुल्तानपुर से कांग्रेस के सांसद संजय सिंह अपनी पत्नी अमिता सिंह को दोबारा विधायक बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। वह कांग्रेस के टिकट पर अमेठी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। बहराइच से कांग्रेस सांसद कमांडो कमल किशोर अपनी पत्नी पूनम किशोर को जिले के श्रावस्ती सीट से कांग्रेस का टिकट दिलाने में कामयाब रहे। 

जेल में बंद जौनपुर से बसपा के सांसद धनंजय सिंह ने अपनी पत्नी जागृति सिंह को विधायक बनाने के लिए निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतार दिया है। बसपा सांसद बृजेश पाठक ने अपनी पत्नी नम्रता पाठक को उन्नाव की सदर सीट से चुनाव मैदान में उतारा है। 

आजमगढ़ सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रमाकांत यादव भी अपनी पत्नी रंजना यादव को पार्टी से टिकट दिलवाने में कामयाब रहे। वह आजमगढ़ सदर से चुनाव मैदान में हैं। अमरोहा से राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के सांसद देवेंद्र नागपाल की पत्नी अंजू नागपाल जिले की नौगहा सादात विधानसभा सीट से मैदान में हैं। 

इस पर राजनीतिक चिंतक एच. एन. दीक्षित ने कहा, ‘स्वयं सांसद व मंत्री होने के बावजूद अपने परिवार के लोगों को क्षेत्र का विधायक बनाने की ये परम्परा स्वस्थ नहीं है। पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता होने की स्थिति में दिए जाने वाले टिकट को उचित माना जा सकता है, लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो साफ है कि राजनीतिक दल सम्बंधित क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रहे हैं।’

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