और हिन्दू परिवार भी रमजान के पाक महीने में रोजे रखकर मुस्लिम भाईयों की खुशी में शरीक होते हैं। बाडमेर जिले के सरहदी गांवों में हिन्दू परिवारों द्वारा रोजा रखने की परंपरा काफी पुरानी है। देश के विभाजन और उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युध्दों के दौरान भारत आए हिन्दू और मुस्लिम परिवारों में समान रीति रिवाज है। हिन्दुओं में विशेषकर मेघवाल जाति के परिवार सिंध के महान संत पीर पिथोरा के अनुयायी हैं। सिंधी मुसलमान भी पीर पिथोरा के प्रति समान आस्था रखते हैं। पीर पिथोरा के जितने भी अनुयायी हैं वे रमजान महीने में श्रध्दानुसार रोजे रखते हैं। सरहदी गांवों गौहड का तला रबासर,साता,सिहानिया,बाखासरऔर केलनोर सहित कई गांवों के हिन्दू रोजे रखते हैं।
नवातला निवासी पाताराम ने बताया कि वह हर साल रोजे रखते हैं। रोजे के दौरान वह बाकायदा नमाज भी पढ़ते हैं। रोजे के दौरान वह पूर्णत मुस्लिम रीति रिवाजों का पालन करते हैं। पाताराम ने बताया कि उसके पिता भी रोजे रखते थे। सरहद पार रह रहे हिन्दू-मुस्लिम परिवारों के रीति रिवाजों में भी कोई यादा फर्क नहीं है। इनकी शादी-विवाह,मृत्यु ,त्यौहार,खानपान पहनावा तथा भाषा भी एक जैसे है। हिन्दू परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे भी रोजे रखते हैं। मौलवी हनीफ मोहम्मद ने बताया कि हिन्दू और मुस्लिम रीति रिवाजों में इतनी समानता है कि कई बार इनमें भेद करना भी मुश्किल हो जाता है। रमजान में तो हिन्दू-मुस्लिम साथ-साथ रोजे रखते हैं और एक-दूसरे के यहां इफ्तार भी करते हैं। हालांकि पीर पिथोरा का धार्मिक स्थल पाकिस्तान में है, मगर उनके अनुयायियों ने बाडमेर जिले में जरासिधर गांव के समीप जेता की जाल नामक धार्मिक स्थल बनाया हुआ है। पीर पिथोरा की जियारत करने वालों में मुसलमानों की संख्या भी काफी रहती है।
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