मोदी को झटका, SC ने मांगा ‘फर्जी मुठभेड़ों’ का सच

मोदी को झटका, SC ने मांगा ‘फर्जी मुठभेड़ों’ का सच

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले निगरानी प्राधिकरण से गुजरात में वर्ष 2002 से 2006 के बीच हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों के मामलों की पड़ताल कर तीन माह में रिपोर्ट देने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि इससे इन मुठभेड़ों की सचाई सामने आ सकेगी। गुजरात सरकार ने गत वर्ष अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एमएस शाह को इस अवधि के दौरान हुए इनकाउंटर की जांच पर नजर रखने को कहा था।

हर पहलू पर जांच चाहती है अदालत
जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस सीके प्रसाद ने कहा कि एक निगरानी प्राधिकरण बनाया गया है और इस अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश उसके अध्यक्ष हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अदालत चाहेगी कि वह दोनों याचिकाओं में बताए गए कथित फर्जी मुठभेड़ के सभी मामलों को देखें। पीठ ने 2002 से 2006 के बीच गुजरात में हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत चाहती है कि जांच हर पहलू पर हो, ताकि हर मामले में सच्चाई सामने आए। इन याचिकाओं में एक तरह से संकेत दिया गया है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को कथित रूप से आतंकवादियों के तौर पर निशाना बनाया गया।

प्राधिकरण के अध्यक्ष को स्वतंत्र टीम गठित करने की आजादी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निगरानी प्राधिकरण के अध्यक्ष के पास एक स्वतंत्र टीम गठित करने की आजादी होगी जिसमें गुजरात विशेष कार्य बल या बाहर से अधिकारी शामिल किए जा सकते हैं। पीठ ने कहा कि निगरानी के अध्यक्ष मुठभेड़ में मौत के किसी भी मामले में पुलिस के पूर्ववर्ती रिकॉर्ड या मानवाधिकार संस्थाओं के रिकॉर्ड मंगा सकते हैं जिनका जिक्र याचिकाओं में किया गया है। हालांकि पीठ ने यह साफ किया कि निगरानी इकाई उन मामलों को नहीं देखेगी जिनका जांच अन्य एजेंसियां शीर्षस्थ अदालत के आदेशों पर कर रही हैं। अदालत ने कहा कि यदि अध्यक्ष चाहें तो मामले में याचिकाकर्ताओं या मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों का पक्ष सुन सकते हैं।

गौरतलब है कि शीर्षस्थ अदालत ने गीतकार जावेद अख्तर और वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीस की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में गुजरात में पुलिस की ओर से 2002 से 2006 के बीच कथित फर्जी मुठभेड़ों में 21 लोगों की मौत के मामले में जांच की मांग की गई है।सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले निगरानी प्राधिकरण से गुजरात में वर्ष 2002 से 2006 के बीच हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों के मामलों की पड़ताल कर तीन माह में रिपोर्ट देने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि इससे इन मुठभेड़ों की सचाई सामने आ सकेगी। गुजरात सरकार ने गत वर्ष अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एमएस शाह को इस अवधि के दौरान हुए इनकाउंटर की जांच पर नजर रखने को कहा था।


हर पहलू पर जांच चाहती है अदालत
जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस सीके प्रसाद ने कहा कि एक निगरानी प्राधिकरण बनाया गया है और इस अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश उसके अध्यक्ष हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अदालत चाहेगी कि वह दोनों याचिकाओं में बताए गए कथित फर्जी मुठभेड़ के सभी मामलों को देखें। पीठ ने 2002 से 2006 के बीच गुजरात में हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत चाहती है कि जांच हर पहलू पर हो, ताकि हर मामले में सच्चाई सामने आए। इन याचिकाओं में एक तरह से संकेत दिया गया है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को कथित रूप से आतंकवादियों के तौर पर निशाना बनाया गया।

प्राधिकरण के अध्यक्ष को स्वतंत्र टीम गठित करने की आजादी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निगरानी प्राधिकरण के अध्यक्ष के पास एक स्वतंत्र टीम गठित करने की आजादी होगी जिसमें गुजरात विशेष कार्य बल या बाहर से अधिकारी शामिल किए जा सकते हैं। पीठ ने कहा कि निगरानी के अध्यक्ष मुठभेड़ में मौत के किसी भी मामले में पुलिस के पूर्ववर्ती रिकॉर्ड या मानवाधिकार संस्थाओं के रिकॉर्ड मंगा सकते हैं जिनका जिक्र याचिकाओं में किया गया है। हालांकि पीठ ने यह साफ किया कि निगरानी इकाई उन मामलों को नहीं देखेगी जिनका जांच अन्य एजेंसियां शीर्षस्थ अदालत के आदेशों पर कर रही हैं। अदालत ने कहा कि यदि अध्यक्ष चाहें तो मामले में याचिकाकर्ताओं या मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों का पक्ष सुन सकते हैं।

गौरतलब है कि शीर्षस्थ अदालत ने गीतकार जावेद अख्तर और वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीस की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में गुजरात में पुलिस की ओर से 2002 से 2006 के बीच कथित फर्जी मुठभेड़ों में 21 लोगों की मौत के मामले में जांच की मांग की गई है।


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