वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी बनया हकीकत

वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी बनया हकीकत

 वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी बीती रात से हकीकत बन चुका है। अर्थव्यवस्था के लिए यह निर्णायक क्षण है। अभी तक तमाम अलग-अलग अप्रत्यक्ष करों की जटिल जकड़न अब एक कर में समाहित होकर सुगमता का पर्याय बनेगी। उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, केंद्रीय बिक्री कर जैसे तमाम कर अब अतीत के पन्नों में सिमट गए। ये समूचे वित्तीय तंत्र की सक्षमता बढ़ाने में अवरोध बन रहे थे। अभी तक इसके लिए कई अलग-अलग विभाग थे। राज्यों की अपनी अलहदा व्यवस्था हुआ करती थी। अब इन सभी का संगम हो गया। जीएसटी से कर अनुपालन भी आसान हो जाएगा, लेकिन इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि यह कानून अपने आदर्श रूप में लागू नहीं हो पा रहा है, फिर भी इतनी तसल्ली दी जा सकती है कि भारत जैसी विविधता और संघीय ढांचे वाले देश में इतनी कशमकश के बाद जीएसटी लागू होना स्वागतयोग्य है। अगर यह बेहतर नहीं तो बढ़िया जरूर है। इससे अर्थव्यवस्था में व्यापक हलचल मचने के आसार भी हैं। सरकार भी इससे बखूबी वाकिफ है। तभी तैयारी के लिए इतना समय भी दिया। जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की मियाद में भी छूट दी जा रही है। इसे अब जुलाई के बजाय सितंबर तक भरा जा सकता है, फिर भी विरोध हो रहा है।

 

असंगठित क्षेत्र के छोटे उद्यमी खासतौर पर जीएसटी के खिलाफ मुखर हैं। उनकी पीड़ा है कि अब वे भी कर दायरे में आ जाएंगे। असल में कर मोर्चे पर बचत के दम पर वे अपने उत्पादों की कीमतें कम रख पा रहे थे। इन्हीं कम कीमतों के दम पर वे बाजार में टिके हुए थे। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे कंपिटेटिवनेस यानी प्रतिस्पर्धा क्षमता कहा जाता है। अब ये सभी संगठित क्षेत्र का हिस्सा बन जाएंगे। इसे लेकर आशंकाएं भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी तो महंगाई के मोर्चे पर ही है, लेकिन इसे लेकर ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है। महंगाई का थर्मामीटर माने जाने वाले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआइ में शामिल 50 प्रतिशत वस्तुओं पर जीएसटी में टैक्स की दर से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। वहीं 30 प्रतिशत वस्तुओं पर टैक्स की दर घटाई गई है तो 20 प्रतिशत पर ही कर की दर में इजाफा किया गया है। जीएसटी का संदेश साफ है कि वस्तुएं अपेक्षाकृत सस्ती होंगी और सेवाएं कुछ महंगी। चूंकि इस साल मानसून के मेहरबान रहने के ही आसार हैं इसलिए भी महंगाई बढ़ने की आशंका नहीं है। हालांकि इस साल बेस इफेक्ट का असर कम हो रहा है। लिहाजा आंकड़ों में महंगाई जरूर कुछ उफान मार सकती है। इसी तरह अगर कारोबारी मुनाफाखोरी में लग गए और खुद लाभ उठाकर कीमतों में वृद्धि का भार उपभोक्ताओं पर डालने लगे तो भी महंगाई मुंह उठा सकती है। इससे निपटने के लिए भी एक तंत्र प्रस्तावित है। हां, यह देखना होगा कि यह तंत्र उत्पीड़न का जरिया न बन जाए।


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